Friday, 19 December 2025

 

अंतरराष्ट्रीय ध्यान दिवस पर विशेष लेख 

ध्यान: वैश्विक चेतना को भारत का अनुपम उपहार

डॉ. बलवंत सिंह (योग तज्ञ) ठाणे

शोर, तीव्रता और निरंतर व्यस्तता से भरी आज की दुनिया में मानवता एक बार फिर उस प्राचीन भारतीय ज्ञान की ओर लौट रही है, जिसकी शुरुआत करने से नहीं, बल्कि होने से होती है। यही ज्ञान है ध्यान (Dhyāna) जिसे सामान्यतः मेडिटेशन कहा जाता है, किंतु जिसका अर्थ आधुनिक समझ से कहीं अधिक गहन और व्यापक है। अंतरराष्ट्रीय ध्यान दिवस के अवसर पर यह स्मरण करना आवश्यक है कि किस प्रकार ध्यान वैश्विक चेतना को भारत का एक शाश्वत और अमूल्य उपहार है।

भारतीय परंपरा में ध्यान केवल विश्राम या तनाव-नियंत्रण की विधि नहीं है, जैसा कि आज प्रायः समझा जाता है। यह अंतःचेतना का एक सुव्यवस्थित विज्ञान है। इसका मूल वेदों, उपनिषदों और श्रीमद्भगवद्गीता में निहित है तथा महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र में इसे क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत किया। ध्यान कोई पृथक तकनीक नहीं, बल्कि सतत जागरूकता की स्वाभाविक अवस्था है। यह नैतिक जीवन (यम–नियम), शारीरिक संतुलन (आसन), श्वास-नियमन (प्राणायाम), इंद्रिय-संयम (प्रत्याहार) और एकाग्रता (धारणा) के बाद प्रकट होता है। इस प्रकार ध्यान मन की परिपक्वता का द्योतक है, न कि उससे पलायन का साधन।

भारतीय ऋषियों ने चेतना को मस्तिष्क की उपज नहीं, बल्कि समस्त अस्तित्व का आधार माना। ध्यान वह साधन है जिसके माध्यम से इस सत्य का प्रत्यक्ष अनुभव किया जा सकता है। गहन अंतर्मौन के माध्यम से साधक चंचल विचार-प्रवाह से ऊपर उठकर स्वयं मन का साक्षी बनता है। यह अंतःयात्रा स्पष्टता, करुणा और अंततः आत्मबोध (आत्म-ज्ञान) की ओर ले जाती है। यही कारण है कि ध्यान केवल व्यक्ति को नहीं, बल्कि पूरे समाज को रूपांतरित करने की क्षमता रखता है।

आज जब तंत्रिका-विज्ञान (न्यूरोसाइंस) सजगता, ध्यान-नियंत्रण और भावनात्मक संतुलन पर शोध कर रहा है, तब वह उन सत्यों की वैज्ञानिक पुष्टि कर रहा है जिन्हें भारतीय योग-मनःविज्ञान ने सहस्रों वर्ष पूर्व स्पष्ट कर दिया था। शोध बताते हैं कि ध्यान मस्तिष्क के अनावश्यक आत्मकेंद्रित सक्रियता को शांत करता है, तनाव-प्रतिक्रियाओं को कम करता है और भावनात्मक स्थिरता को बढ़ाता है। किंतु भारत का योगदान इससे कहीं आगे है: ध्यान केवल उपचारात्मक नहीं, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक भी है। यह विवेक, वैराग्य और करुणा जैसे गुणों का विकास करता है, जिनकी आधुनिक विश्व को अत्यंत आवश्यकता है।

स्वास्थ्य, शिक्षा, नेतृत्व और संघर्ष-समाधान जैसे क्षेत्रों में ध्यान की वैश्विक स्वीकृति के पीछे भारत की यही परंपरा है। हिमालयी आश्रमों से लेकर महानगरों के वेलनेस केंद्रों तक, ध्यान का मौन प्रभाव एक अधिक संवेदनशील और चिंतनशील वैश्विक संस्कृति का निर्माण कर रहा है। किंतु भारत का वास्तविक उपहार किसी तकनीक के प्रसार में नहीं, बल्कि एक दृष्टि प्रदान करने में है: कि विश्व-शांति का आरंभ भीतर की शांति से होता है।

अंतरराष्ट्रीय ध्यान दिवस पर ध्यान मानवता को ठहरने, अंतर्मुखी होने और सजग जीवन की कला को पुनः खोजने का आमंत्रण देता है। इस प्राचीन साधना को स्मरण करते हुए विश्व भारत के अतीत से कुछ उधार नहीं ले रहा, बल्कि उस कालातीत ज्ञान में सहभागी बन रहा है, जो समस्त मानवता के लिए है।

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