दुःखदौर्मनस्याङ्गमेजयत्वश्वासप्रश्वासा विक्षेपसहभुवः
आधुनिक वैज्ञानिक व्याख्या (मनोविज्ञान और न्यूरोसाइंस की दृष्टि से)
लेखक: डॉ. बलवंत सिंह, ठाणे
1. सूत्र का भावार्थ
पतञ्जलि योगसूत्र (1.31):
“दुःखदौर्मनस्याङ्गमेजयत्वश्वासप्रश्वासा विक्षेपसहभुवः”
जब मन में विक्षेप (मानसिक विचलन, अस्थिरता, या चित्त की चञ्चलता) उत्पन्न होते हैं, तो उनके साथ सहभू (सहचर या सहगामी) लक्षण रूप में चार अवस्थाएँ प्रकट होती हैं :—
·
दुःख (पीड़ा/तनाव)
·
दौर्मनस्य (खिन्नता/उद्विग्नता)
·
अङ्गमेजयत्व (शारीरिक अस्थिरता/कंपकंपी)
·
श्वासप्रश्वास (श्वसन की अनियमितता)
2. संस्कृत टीका एवं परम्परागत व्याख्या
a.
व्यासभाष्य (योगसूत्रभाष्य):
“दुःखं मनःक्लेशः, दौर्मनस्यं चित्तस्य विषादः, अङ्गमेजयत्वं शरीरकम्पनं, श्वासप्रश्वासौ प्राणापानयोः असंनियमनम्।”
यहाँ व्यासाचार्य स्पष्ट करते हैं कि चित्तविक्षेप मात्र मन में ही नहीं रहता, वह शरीर और श्वास को भी प्रभावित करता है।
b.
वाचस्पतिमिश्र (तत्ववैशारदी):
“सहभुवः इत्युक्त्या विक्षेपस्य अनुगामिनो लक्षणानि निरूप्यन्ते।”
विक्षेप के बिना ये लक्षण नहीं, परन्तु विक्षेप होते ही ये अनिवार्यतः साथ उत्पन्न होते हैं।
c.
विज्ञानभिक्षु (योगवर्त्तिक):
“दुःखादयो विक्षेपजन्याः, आत्मानं चित्तं च खेदयन्ति।”
यहाँ संकेत है कि मानसिक विक्षेप आत्म-अनुभूति में भी खिन्नता उत्पन्न करता है।
3. मनोविज्ञान की दृष्टि से सहभुव
आधुनिक मनोविज्ञान बताता है कि मन और शरीर परस्पर गहराई से जुड़े हैं। तनाव या विक्षेप केवल मानसिक स्तर पर नहीं रहता, बल्कि वह शारीरिक और भावनात्मक प्रतिक्रियाओं के रूप में भी प्रकट होता है।
a)
दुःख और Stress Response: मानसिक तनाव Frustration,
Irritation और Anxiety के रूप में दुःख की अनुभूति कराता है। यह Distress Syndrome कहलाता है।
b)
दौर्मनस्य और Depression: निराशा, आत्मविश्वास की कमी और नकारात्मकता Depressive Symptoms के रूप में प्रकट होती है। यही योगसूत्र का “दौर्मनस्य” है।
c)
अङ्गमेजयत्व और Psychosomatic Symptoms: चिंता में हाथ-पाँव काँपना, पसीना आना, हृदयगति बढ़ना : ये
सब Psychosomatic
Reactions हैं।
d)
श्वासप्रश्वास और Anxiety Disorders: घबराहट या Panic Attack में सांस तेज़ हो जाती है, जिसे Hyperventilation कहा
जाता है। यह सूत्र के “श्वासप्रश्वास” से मेल खाता है।
4. न्यूरोसाइंस की दृष्टि से सहभुव
न्यूरोसाइंस मस्तिष्क और शरीर के इस पारस्परिक सम्बन्ध को वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित करता है।
a)
Amygdala
Activation
(भय और दुःख):
विक्षेप की स्थिति में Amygdala सक्रिय हो जाता है, जिससे Fear &
Negative Emotions उत्पन्न होते हैं।
b)
Neurotransmitters
और दौर्मनस्य:
Serotonin और
Dopamine का असंतुलन व्यक्ति को Depression (दौर्मनस्य) की ओर ले जाता है।
c)
Motor
Cortex और अङ्गमेजयत्व:
तनाव के समय Motor
Cortex और Basal
Ganglia की असंयमित गतिविधि से शरीर काँपने लगता है।
d)
Autonomic
Nervous System
और श्वासप्रश्वास:
Sympathetic Nervous System के सक्रिय होने से सांस अनियमित हो जाती है। यह वही Fight-or-Flight Response है, जिसे पतञ्जलि ने “श्वासप्रश्वास” कहा।
5. समाधान: योग और आधुनिक चिकित्सा
पतञ्जलि का अगला सूत्र (1.32) है
“तत्प्रतिषेधार्थमेकत्वाभ्यासः”
(इन विक्षेपों की निवृत्ति हेतु एकत्वाभ्यास अर्थात् ध्यान और समाधि का अभ्यास करना चाहिए।)
a)
ध्यान और Mindfulness: आधुनिक शोध बताते हैं कि ध्यान Prefrontal Cortex को सक्रिय करता है और Amygdala की उत्तेजना को कम करता है। इससे दुःख और दौर्मनस्य घटते हैं।
b)
प्राणायाम:
प्राणायाम से श्वास नियंत्रित होती है और Parasympathetic
Nervous System सक्रिय होकर शरीर को शान्त करता है।
c)
योग-आसन:
नियमित आसन अभ्यास से शारीरिक अस्थिरता कम होती है और अङ्गमेजयत्व नियंत्रित होता है।
6. निष्कर्ष
पतञ्जलि का यह सूत्र गहन मनोदैहिक (Mind-Body) सम्बन्ध को उद्घाटित करता है।
·
दुःख,
दौर्मनस्य,
अङ्गमेजयत्व
और
श्वासप्रश्वास : ये सब विक्षेप के सहभुव (सहचर लक्षण) हैं।
·
आधुनिक मनोविज्ञान इसे Psychosomatic
Syndrome कहता है।
·
न्यूरोसाइंस इसे Brain-Body Correlation द्वारा स्पष्ट करता है।
इस
प्रकार, योगाभ्यास केवल आध्यात्मिक साधना ही नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य और न्यूरोबायोलॉजिकल
संतुलन का प्राकृतिक उपचार है।
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