Friday, 31 October 2025

 

अविद्या से विद्या तक: भारतीय दार्शनिक परंपरा और आधुनिक न्यूरोसाइंस का संगम

लेखक: डॉ. बलवंत सिंह, ठाणे

भूमिका

मानव जीवन मूलतः एक अंतर्यात्रा है, अविद्या (अज्ञान) से विद्या (ज्ञान) की ओर, अस्थिरता से शांति की ओर, बंधन से मुक्ति की ओर। भारतीय दार्शनिक परंपरा में यह यात्रा मात्र दार्शनिक विमर्श नहीं, बल्कि एक Psychospiritual Transformation Process है। उपनिषद् इसे ब्रह्मविद्या, भगवद्गीता योग योग्यता, और पतञ्जलि योगसूत्र चित्तवृत्ति निरोध के रूप में प्रतिपादित करते हैं; और आधुनिक आधुनिक स्नायुविज्ञान इसे Neural Rewiring तथा Cognitive Reprogramming कहती है।

अविद्या की संकल्पना (आध्यात्म और विज्ञान दोनों की दृष्टि से)

उपनिषद् के अनुसार, अविद्या वह स्थिति है जिसमें मनुष्य स्वयं को शरीर या इन्द्रियों तक सीमित समझता है।
कठोपनिषद् (1.25) कहता है:

अविद्यायामन्तरे वर्तमानाः स्वयं धीराः पण्डितं मन्यमानाः।
अज्ञान में जीते हुए लोग स्वयं को ज्ञानी मानते हैं।

ईशोपनिषद् (11) में कहा गया:

अविद्यया मृत्युम् तीर्त्वा विद्यया अमृतम् अश्नुते।
अज्ञान को पार करके ही अमरत्व प्राप्त होता है।

पतञ्जलि योगसूत्र (2.5) अविद्या को अत्यंत वैज्ञानिक रूप में परिभाषित करता है:

अनित्याशुचिदुःखानात्मसु नित्यशुचिसुखात्मख्यातिरविद्या।
जो अनित्य को नित्य, अशुद्ध को शुद्ध, दुःख को सुख और अनात्मा को आत्मा मान ले; वही अविद्या है।

आधुनिक मनोविज्ञान और आधुनिक स्नायुविज्ञान में अविद्या क्या है?

1.     Cognitive Distortion: जब व्यक्ति वास्तविकता को विकृत रूप में देखता है (जैसेमैं असफल हूँ’, ‘दुनिया मेरे विरुद्ध हैआदि)

2.     Default Mode Network (DMN) Overactivity: Neuroscience बताता है कि जब दिमाग का DMN नेटवर्क अत्यधिक सक्रिय हो जाता है, तो व्यक्ति लगातार Self-talk, Ego, Past Regret, Future Anxiety में जीता है; यह ठीक वही है जिसे योग चित्तवृत्तिकहता है।

3.     Identity Illusion: Modern Psychology इसे False Identification या Ego Attachment कहती है ; वही जिसे वेदांत मेंदेहाभिमान कहते हैं।

विद्या की ओर साधना-पद्धति (आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों रूपों में)

1. उपनिषद् का मार्ग (श्रवण, मनन, निदिध्यास):

ध्यान देने योग्य बात है किश्रवण-मनन-निदिध्यास” वास्तव में आज की Cognitive Behavioral Therapy (CBT) का ही आध्यात्मिक रूप है; जहाँ गलत धारणाओं (अविद्या) को पहचानकर उन्हें सही ज्ञान (विद्या) से प्रतिस्थापित किया जाता है

2. भगवद्गीता (कर्मयोग, ज्ञानयोग, ध्यानयोग) = Behavioral Rewiring:

श्रीकृष्ण कहते हैं

योगस्थः कुरु कर्माणि।” (गीता 2.48)

काम करो, लेकिन आसक्ति छोड़कर

इसे आधुनिक मनोविज्ञान में पूर्ण तल्लीनता की अवस्था कहा जाता है, जब व्यक्ति फल की चिंता छोड़कर केवल Present Moment Performance में डूब जाता है, अनुसंधान बताती है कि ऐसे लोगों में तनाव हार्मोन Cortisol घटता है और Endorphins बढ़ते हैं।

3. पतञ्जलि योगसूत्र (अभ्यास और वैराग्य) = Neuroplasticity Training:

अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोधः।” (1.12)

    आधुनिक Neuroscience सिद्ध करती है कि Repeated Practice + Detachment from Cravings = Neural Pathways का Complete Rewiring
Harvard Studies
ने दिखाया कि केवल 8 सप्ताह के ध्यान अभ्यास से Amygdala (Fear Center) छोटा हो जाता है और Prefrontal Cortex (Wisdom Center) मजबूत हो जाता है।

आध्यात्मिक मनोविज्ञान का चिकित्सीय रूप

1.    अहंकार का समाधान: नम्रता और आत्मसमर्पणPsychology में Ego-Deflation Therapies

2.     व्याकुलता का उपचार: प्राणायाम और ध्यानNeuroscience में Vagus Nerve Regulation

3.    आसक्ति और द्वेष का समाधान: वैराग्य  Psychology में Attachment Release Therapies

4.    देहाभिमान से मुक्ति: आत्मज्ञान: “नाहं देहःModern Mindfulness में Self as Observer Technique

विद्या की अंतिम अनुभूति  (Consciousness Realization):

जब अविद्या मिटती है, तो तीनों ग्रंथ एक ही सत्य उद्घाटित करते हैं:

ब्रह्मविद् ब्रह्मैव भवति। (उपनिषद्)

ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा शोचति काङ्क्षति। (भगवद्गीता - 18.54)

तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम्। (योगसूत्र)

आधुनिक तंत्रिकाविज्ञान इसे निर्मल चेतना अवस्था (Pure Awareness State) या एकत्व/अद्वैत चेतना का अनुभव (Non-Dual Consciousness Experience) कहती है और यह अलौकिक आध्यात्मिक अनुभूति (Mystical Experience) पर हजारों मस्तिष्क परीक्षण में सिद्ध हुआ है।

निष्कर्ष

अविद्या से विद्या की यात्रा कोई धार्मिक कहानी नहीं, यह मानसिक भ्रम से जागरूकता की निर्मलता तक का स्नायु तंत्र का क्रमिक परिवर्तन है।

उपनिषद् इसे प्रकाश कहते हैं, गीता इसे योग, योगसूत्र इसे समाधि और आधुनिक आधुनिक स्नायुविज्ञान (Modern Neuroscience) इसे स्नायु-तंत्र का एकीकरण (Neuro-Integration) कहती है।

सत्य एक है: देखन वाले अनेक।                                                  

संदर्भ सूची:

1.     कठोपनिषद्, 1.2.5: विभिन्न संस्कृत टीका संस्करण, गीता प्रेस गोरखपुर।

2.     ईशोपनिषद्, मंत्र 11: गीता प्रेस संस्करण।

3.     व्यास महर्षि: भगवद्गीता, अध्याय 2, श्लोक 48; अध्याय 18, श्लोक 54 गीता प्रेस गोरखपुर।

4.     पतञ्जलि: योगसूत्र, 12; 1.3; 2.5: स्वामी विवेकानन्द भाष्य सहित संस्करण।

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